किसान कर रहे भूजल का घाटा, अधिकारी मौन
🟦 शामली में धान की फसल पर रोक के बावजूद भूजल संकट गहराने की आशंका
🔷 भूजल स्तर पर संकट गहराता जा रहा है
गर्मी की शुरुआत के साथ ही घटते भूजल स्तर को लेकर चर्चाएं फिर से जोर पकड़ने लगी हैं। इस संकट को लेकर प्रदेश सरकार लगातार प्रयास कर रही है ताकि आने वाले समय में जल संकट से बचा जा सके। प्रदेश के कई जिलों में जल संरक्षण और भूजल प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाए गए हैं।

भूजल का घाटा, अधिकारी मौन
🔴 शामली बना जल संकट का केंद्र
जनपद शामली में धान की सैंठी किस्म की खेती, जो कि भूजल दोहन के लिए अत्यंत हानिकारक मानी जाती है, प्रतिबंधित होने के बावजूद खुलेआम की जा रही है।
- ⛔ जिलाधिकारी द्वारा 17 मार्च 2025 को प्रेस नोट जारी कर सैंठी फसल पर रोक की सूचना दी गई थी।
- 📢 इसके बावजूद कई किसान लगातार साठा फसल की बुवाई में लगे हुए हैं, जिससे भूजल स्तर में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है।
⚠️ प्रशासनिक निष्क्रियता बनी चिंता का विषय
- प्रदेश सरकार ने एनसीआर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के डार्क ज़ोन जिलों में इस तरह की खेती को रोकने हेतु जागरूकता अभियान चलाने और कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
- लेकिन अफसोस की बात है कि ये निर्देश सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गए हैं और स्थानीय स्तर पर प्रभावी कार्यवाही नहीं हो रही।
🧪 पर्यावरण और मानव जीवन पर असर
- बार-बार धान की खेती से जल का अति दोहन हो रहा है।
- इससे बीमारियों और कीट प्रकोप में भी वृद्धि हो रही है, जो सीधे तौर पर मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
- यह स्थिति अगर अब भी अनदेखी की गई, तो भविष्य में जल संकट और गंभीर रूप ले सकता है।
🟩 जरूरत है सख्त कार्रवाई की
- 🌾 किसानों को वैकल्पिक फसलों की ओर प्रेरित किया जाए।
- 🔍 ज़मीनी स्तर पर निरीक्षण टीमों की नियुक्ति कर प्रतिबंधित खेती पर तुरंत रोक लगाई जाए।
- 🧑🌾 जल स्तर बचाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन और सब्सिडी आधारित योजनाएं चलाई जाएं।
- ⚖️ नियम तोड़ने वालों पर विधिक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
✅ निष्कर्ष
शामली जैसे जिले, जहां भूजल पहले ही संकट में है, वहां प्रतिबंधित फसलों की खेती को अनदेखा करना भविष्य की पीढ़ियों के लिए संकट उत्पन्न कर रहा है। शासन और प्रशासन को अब कड़ी कार्रवाई कर इस मुद्दे पर जमीनी कार्य करना होगा, नहीं तो यह संकट और भी गहरा हो सकता है।
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