भूल सुधार धर्म की सेवा है निंदा नहीं: स्वामी भारत भूषण
सहारनपुर। मोक्षायतन अंतर्राष्ट्रीय योग संस्थान द्वारा १९८३ से आरंभ की गई “राष्ट्रीय एकता नए दायित्व” विचार श्रृंखला को संबोधित करते हुए योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने कहा कि समाज में कुरीतियां पैदा हो जाना और उनका निवारण होते रहना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, उन्होंने एक प्रचलित मान्यता की ओर ध्यान दिलाया कि पैगंबर हजरत इब्राहिम को उनके सपने में अल्लाह की तरफ से संदेश मिला था कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दें, जिसके बाद उन्होंने अपनी सबसे प्यारी चीज यानी अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का निर्णय किया ।
और जब हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर कुर्बानी दी और इसके बाद जब अपनी आंखों पट्टी हटाई, तो देखा कि उनके बेटे हजरत इस्माइल की जगह पर एक दुंबा की कुर्बानी हो गई थी। तब से कुर्बानी की रवायत शुरू हो गई। योग गुरु ने कहा कि विचारणीय बात ये है कि रवायत के मुताबिक तो सभी अनुयाइयों को भी अपनी सबसे प्यारी चीज अल्लाह के लिए कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, दुंबा क्यों? दुंबा तो सभी की सबसे प्यारी चीज नहीं हो सकती। दुंबे (बकरे) की कुर्बानी तो खुद हजरत इब्राहिम ने भी नहीं दी थी।
इस घटना से सबक लेकर तो अनुयायियों को बकरे की कुर्बानी देने के बजाय उसकी रक्षा करनी चाहिए थी क्योंकि उसने तो अपनी जान देकर हज़रत के बेटे की रक्षा की। सभी धर्म पंथों में कुरीतियां पनपती आई हैं, ये पशु बलि की परंपरा भी, मुस्लिमों कुछ हिंदुओं आदि सब में समान है। हां, इससे प्रेरणा ले कर ईश्वर की राह में अपनी प्यारी से प्यारी चीज का भी परित्याग का जज्बा और अपने भीतर के पशुत्व की बलि देने की बात तो समझ आती है लेकिन अफसोस की बात यह है कि हम यहाँ चूक जाते हैं और निरीह जीवों की हत्या हमे याद रखना चाहिए कि धर्म जागृति है, गफलत भरी रूढ़ियां नहीं।
विविध धर्मपंथ मानवता के भले के लिए है, धर्म के नाम पर चल रही परंपराओं में देश काल परिस्थिति के अनुरूप सुधारात्मक परिवर्तन की आवश्यकता को धर्म की निंदा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। धर्म हमे सहिष्णु दयालु उदार और समझदार बनाता है कट्टर जिद्दी और अविवेकी नहीं। धर्म यह भी सिखाता है कि हमे सत्य को स्वीकारने और असत्य को त्यागने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। अज्ञानतावश लंबे समय तक गलत परंपरा में बने रहने की स्थिति से बाहर निकलने को हमे प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए बल्कि इस बात पर खुशकिस्मत महसूस करना चाहिए कि एक भूल सुधारकर धर्म को गलत समझने और समाज को कुरीतियों से बचाने की नेक पहल करने का कार्य आप कर रहे हैं। गलत रवायतों में सुधार धर्म की सेवा है विरोध नहीं। योगगुरु ने परस्पर सकारात्मक धार्मिक चर्चा को जरूरी बताया और धार्मिक बहस से बचने की सलाह दी।
दैनिक सर्वे बुलेटिन
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